Business Story: सोचिए, अगर कोई आपसे कहे कि एक कॉलेज पास आउट लड़की जिसने न तो कोई भारी भरकम निवेश किया, न कोई बड़ा ऑफिस खोला, लेकिन फिर भी सिर्फ 3 साल के भीतर 49 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई कर ली… तो क्या आप यकीन करेंगे!
पर यह कहानी है एक ऐसी युवा लड़की की जिसने समाज की परंपरागत सोच से हटकर एक ऐसा रास्ता चुना जो न सिर्फ खुद के लिए, बल्कि देश के हजारों कलाकारों के लिए रौशनी बन गया। तो आइए जानते है इस Business Story के बारे में विस्तार से।
पढ़ाई से पैशन तक का सफर और Business Story
सुष्मिता महाराष्ट्र के पुणे शहर से आती हैं। उनका बचपन बहुत ही साधारण माहौल में बीता, लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें आत्मनिर्भरता, ईमानदारी और संवेदनशीलता जैसे मूल्य सिखाए।
उन्होंने साल 2020 में पुणे के विश्वकर्मा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (VIT) से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। डिग्री लेने के बाद उनके पास अच्छी नौकरियों के ऑफर थे, लेकिन सुष्मिता का दिल कहीं और था।
दरअसल, स्कूल के दिनों में ही उन्होंने एक छोटी सी पहल की थी — दोस्तों से चंदा इकट्ठा कर एक अनाथालय में स्टेशनरी देना। इस अनुभव ने उनके मन में समाज के लिए कुछ करने की आग जला दी थी। वे समझ चुकी थीं कि सिर्फ दान करने से काम नहीं चलता, समाज को आत्मनिर्भर बनाने की ज़रूरत है।
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नौकरी छोड़ी, उठाया बड़ा कदम
2021 में जब सबको पहली नौकरी का इंतजार था, सुष्मिता ने एक अलग रास्ता चुना। उन्होंने एक Crowdfunding Platforms की शुरुआत की, जिसका नाम रखा गया “गुल्लक”।
इसका उद्देश्य था लोगों से दान इकट्ठा कर जरूरतमंदों की मदद करना, और दान का ट्रैक रखना कि वह सही जगह जा रहा है या नहीं। लेकिन जल्दी ही उन्हें एहसास हुआ कि सिर्फ पैसे देना किसी की ज़िंदगी नहीं बदलता। ज़रूरी था कि लोगों को खुद अपने पैरों पर खड़ा होने का अवसर मिले।
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पारंपरिक कला को दिया नया जीवन
साल 2021 में एक वाकया उनकी सोच बदलने वाला साबित हुआ। वे तेलंगाना के निर्मल गांव में गईं, जहां लकड़ी पर पेंटिंग करने वाली निर्मल कला वर्षों से चली आ रही थी, लेकिन अब खत्म होने की कगार पर थी।
सुष्मिता ने देखा कि कलाकार मेहनत तो करते थे, पर उनकी कला को कोई खरीदार नहीं मिल रहा था। एक कलाकार से बातचीत के दौरान जब उन्होंने पूछा कि क्या आप अपने बेटे को भी यही सिखाएंगे, तो उसने नाराज होकर कहा, “मैं अपने बेटे को कोई नौकरी दिलाऊंगा, ये कला नहीं सिखाऊंगा।”
वहीं से सुष्मिता को दिशा मिल गई—उन्हें इस पारंपरिक कला को बचाना है और कलाकारों को एक स्थायी आमदनी का जरिया देना है।
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‘गुल्लकारी’ की हुई शुरुआत
करीब एक साल देशभर में घूम कर अलग-अलग कलाओं और कलाकारों से मिलने के बाद सुष्मिता ने अप्रैल 2023 में ‘गुल्लकारी’ नाम से एक Social Enterprise की शुरुआत की।
‘गुल्लकारी’ कलाकारों और ग्राहकों के बीच सेतु का काम करता है। यह सिर्फ Handicraft बेचने वाला प्लेटफॉर्म नहीं है, बल्कि यह कलाकारों को ट्रेनिंग देता है, वर्कशॉप आयोजित करता है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में मदद करता है।
यह कंपनी पारंपरिक कला जैसे गोंड पेंटिंग, पटचित्र, चित्तारा, वारली, कलमकारी, चेरियल पेंटिंग, नाइकपॉड मास्क, मिनिएचर आर्ट और थोलू बोम्मलाटा जैसी लुप्त हो रही कलाओं को नई पहचान दे रही है।
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टिकाऊ कमाई और ग्रीन पैकेजिंग
गुल्लकारी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये पर्यावरण का भी ख्याल रखती है। कंपनी बबल रैप की जगह भूसी और Recyclable Packaging का इस्तेमाल करती है।
इसके अलावा, जल्द ही ये Blockchain तकनीक को शामिल करने जा रही है, जिससे ग्राहकों को यह भरोसा हो सके कि उन्होंने जो उत्पाद खरीदा है, वह असली है और किसी पारंपरिक कलाकार द्वारा ही बनाया गया है।
दो साल में ₹49 लाख से ज्यादा की कमाई
साल 2023-24 तक गुल्लकारी ने 4,000 से ज्यादा Handicraft Products की बिक्री की। इसका राजस्व ₹49 लाख से अधिक पहुंच गया।
सुष्मिता बताती हैं कि उन्होंने अब तक 15 Corporates के साथ करार किए हैं, जिन्हें वे Gifting Solutions और Live Art Workshops देती हैं। इन वर्कशॉप में कलाकारों को Trained किया जाता है और वे अपनी कला को ग्राहकों के सामने प्रस्तुत करते हैं।
सपना सिर्फ कमाई नहीं, संस्कृति को संजोना है
सुष्मिता का सपना सिर्फ एक सफल बिजनेस वुमन बनना नहीं है, बल्कि भारतीय पारंपरिक कला को बचाना, कलाकारों को सम्मान देना और समाज में बदलाव लाना है। वे चाहती हैं कि गुल्लकारी एक ऐसा प्लेटफार्म बने जो लोककला और स्थानीय कारीगरों को वैश्विक पहचान दिलाए।
वे कहती हैं, “हमारा मकसद सिर्फ प्रोडक्ट बेचना नहीं है, हम एक संस्कृति को जीवित रखना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि भारत की पारंपरिक कला अगली पीढ़ियों तक पहुंचे और हर कलाकार गर्व से कहे—ये मेरा पेशा है, मेरा गर्व है।”