Farming Business Idea: आज के समय में भी अगर कोई इंसान सही ढंग से खेती करे तो उसके अंदर भी काफी ज्यादा मुनाफा है। लेकिन ज्यादातर लोग पुराने ढंग से ही खेती करते हैं। इसलिए अक्सर उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।
आज अपनी इस पोस्ट में हम आपको बिहार के एक ऐसे ही नौजवान की कहानी बताने जा रहे हैं। जिसने पहले तो लाखों रुपए की नौकरी को छोड़ा। इसके बाद खेती से जुड़ गया और फिर कुछ ही महीनों बाद शुरू कर दी बंपर कमाई।
काम चलाऊ लागत से स्टार्ट होगा बिजनेस
अगर हम उस नौजवान की बात करें तो उस नौजवान का नाम है राजेश कुमार। राजेश कुमार मूल रूप से औरंगाबाद जिले के रहने वाले हैं। इन्होने अपनी पढ़ाई कृषि से की हुई है। इसके बाद इन्होने मैनेजमेंट की पढ़ाई की। इसके बाद राजेश कुमार ने नौकरी शुरू कर दी। राजेश कुमार ने कई सालों तक एनजीओ और कॉरपोरेट सेक्टर में नौकरी की हुई है।
जहां पर उनकी सैलरी डेढ़ लाख रुपए तक थी। लेकिन राजेश कुमार का मन इस काम में लग नहीं था। इसलिए उन्होंने कुछ नया करने का सोचा। जिससे उनके मन को शांति मिल सके।
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लोन लेकर शुरू की मशरूम की खेती
इसके बाद राजेश कुमार के दिमाग में विचार आया कि क्यों ना मशरूम की खेती की जाए। शुरुआत में उन्होंने पैसों का अभाव देखा। जिसके चलते उन्हें बैंक से 1 करोड़ रुपए का लोन भी लेना पड़ा।
इसके बाद उन्होंने शुरुआत में सालाना 100 बैग मशरूम तैयार करने का प्लान बनाया। जो कि सफल भी रहा। इसके बाद जैसे जैसे उनका अनुभव बढ़ता गया और वो अपना काम भी बढ़ाते गए। मशरूम के इस काम को वो फिलहाल गया के अंदर कर रहे हैं।
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आज सालाना 2 करोड़ का टर्नओवर
इसके बाद जब राजेश कुमार को लगा कि अब वो एकदम सही रास्ते पर हैं। तो उन्होंने एक टीम बना ली। आज उनकी टीम में 500 महिलाएं शामिल हैं। साथ ही राजेश सालाना 1 लाख बैग मशरूम तैयार करते हैं। जो कि पूरे 100 टन की होती है। इसके अलावा आज के समय में राजेश कुमार का इस काम से सालाना 2 करोड़ रुपए का टर्नओवर निकल जाता है।
राजेश कुमार कहते हैं कि आज उनकी मशरूम केवल जिले तक ही सीमित नहीं है। उनकी मशरूम की बिक्री बिहार, झारखंड और दिल्ली में भी सप्लाई होती है। क्योंकि वो और उनकी टीम इस काम में कड़ी मेहनत करते हैं।
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गांव में रहकर काम करना आसान
राजेश कुमार कहते हैं कि अगर वो यही काम शहर में करते तो शायद उनकी इतनी ज्यादा कमाई नहीं होती है। लेकिन वो गांव में काम करते हैं। इसलिए उनकी ज्यादा कमाई होती है। क्योंकि गांव में ज्यादातर महिलाएं खाली होती हैं। जिनको काम की जरूरत होती है। इसलिए यहां काम करने वाले लोग आसानी से मिल जाते हैं।
जबकि महिलाओं को कम पैसा देना होता है। जबकि अगर इसी काम को वो किसी शहर में शुरू करते तो शायद वहां ज्यादा लागत लगानी पड़ती। आज वो गया में रहकर ही इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका लक्ष्य आने वाले समय में और ज्यादा उत्पादन बढ़ाना है।